जिला ऊना के पशुपालकों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बनकर उभरा है कि पशुपालन विभाग के पास लंबे समय से दवाइयों का स्टॉक उपलब्ध नहीं है। विभाग पिछले डेढ़ साल से पशुओं के उपचार के लिए जरूरी दवाइयों का टेंडर ही जारी नहीं कर पाया है, जिसके चलते हालत लगातार बिगड़ती जा रही है। पशुपालक जहां महंगी दवाइयां निजी दुकानों से खरीदने को मजबूर हैं, वहीं सरकारी चिकित्सालयों में दवाओं का नामोनिशान तक नहीं है। इस स्थिति ने विभाग की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, क्या विभाग में लापरवाही है या फिर दवाइयों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रक्रिया को ढीला छोड़ दिया है? स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं के बीमार होने की संख्या बढ़ रही है, लेकिन सरकारी स्तर पर राहत न मिलने से पशुपालक खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
जिला ऊना में पशुपालन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार पशुपालन विभाग पिछले डेढ़ साल से पशुओं के लिए दवाइयों का टेंडर जारी नहीं कर पाया है। स्थिति यह हो चुकी है कि विभाग के पास पशुपालकों को देने के लिए आवश्यक दवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। पशुपालन विभाग इस समय केवल सलाह देने की भूमिका तक सिमटकर रह गया है, जबकि उपचार के लिए आवश्यक दवाएं पशुपालकों को अपनी जेब से खरीदनी पड़ रही हैं। स्थानीय पशुपालकों ने बताया कि उन्हें अपने पशुओं का इलाज कराने के लिए महंगी दवाइयां बाजार से खरीदनी पड़ रही हैं। पहले कई दवाएं पशुपालन विभाग के चिकित्सालयों और डिस्पेंसरी में मुफ्त या कम लागत पर आसानी से मिल जाती थी, लेकिन अब साधारण दवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। उनका कहना है कि बढ़ते खर्च के कारण पशुपालन व्यवसाय घाटे का सौदा बनता जा रहा है और सरकारी व्यवस्था पर भरोसा टूट रहा है।
इस मामले पर पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. वीरेंद्र सिंह पटियाल ने बताया कि पिछले कुछ समय से दवाइयों का रेट कांट्रैक्ट न हो पाने के कारण यह समस्या सामने आई थी। उन्होंने कहा कि अब विभाग द्वारा रेट कांट्रैक्ट प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और जल्द ही पशु पलकों को सरकारी स्तर पर दवाइयां उपलब्ध हो जाएंगी।