Home बड़ी खबरेnews हिमाचल का ऐसा गांव, जहां चारपाई पर सोने से लगता है देवी का श्राप! सदियों से निभाई जा रही परंपरा

हिमाचल का ऐसा गांव, जहां चारपाई पर सोने से लगता है देवी का श्राप! सदियों से निभाई जा रही परंपरा

A village in Himachal Pradesh where sleeping on a cot is considered a goddess's curse! This tradition has been followed for centuries.

मंडी जिले में पर्वतीय वादियों में बसे पूर्व सुकेत रियासत के काओ गांव की पहचान सिर्फ इसकी प्राकृतिक सुंदरता से नहीं, बल्कि यहां स्थित मां कामाक्षा मंदिर की दिव्यता और रहस्यमयी परंपराओं से भी है। करसोग उपमंडल मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर शक्ति की देवी सती को समर्पित है। एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित यह कलात्मक मंदिर देखने वालों को अपनी अद्भुत स्थापत्य कला से मंत्रमुग्ध कर देता है।

 

सतयुग से ही तांत्रिक सिद्धियों का केंद्र रहा है ये स्थान

सुकेत संस्कृति साहित्य और जन-कल्याण मंच पांगणा-सुकेत के अध्यक्ष डाॅ. हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि तंत्र साधना का सर्वोच्च पीठ माना जाता है। उनके अनुसार सतयुग से ही यह स्थान तांत्रिक सिद्धियों का केंद्र रहा है और हिमाचल के सभी शक्तिपीठों में इसका स्थान सबसे ऊपर है। यहां स्थित देवी की महामुद्रा के दर्शन आज तक किसी ने नहीं किए। कहा जाता है कि महामुद्रा के बाहर देवी महिषासुर मर्दिनी के रूप में निवास करती हैं। मंदिर में एक छोटा-सा छेद, जिसे मोरी कहा जाता है, इसी मार्ग से भक्त देवी महाकाली को धूप अर्पित करते हैं। मान्यता है कि सती प्रथा काल में जब महिलाएं सती होती थीं तो वे पहले इस मोरी से महाकाली के दर्शन करती थीं।

बिस्तर पर मिलती हैं देवी के विश्राम की सलवटें

काओ गांव में एक अनूठी परंपरा आज भी कायम है, यहां के लोग चारपाई पर नहीं सोते। उनका विश्वास है कि अगर वे बिस्तर पर सोएंगे तो देवी के श्राप से उन्हें कष्ट हो सकता है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा में आज भी कोई बदलाव नहीं हुआ। केवल मां कामाक्षा के लिए ही मंदिर के शयनकक्ष में बिस्तर बिछाया जाता है। पुजारी रात को देवी के विश्राम हेतु बिस्तर सजाते हैं और सुबह जब कपाट खुलते हैं तो बिस्तर पर पड़ी सलवटें इस बात का संकेत मानी जाती हैं कि देवी वास्तव में वहां विश्राम करती हैं। यह घटना भक्तों के लिए आस्था और चमत्कार दोनों का साक्षात प्रमाण मानी जाती है।

 

परशुराम की तपस्या से जुड़ा इतिहास

संस्कृति मर्मज्ञ डाॅ. जगदीश शर्मा के अनुसार इस सिद्ध स्थल की स्थापना स्वयं भगवान परशुराम ने की थी। पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान परशुराम ने अपनी माता रेणुका का वध किया तो उन्होंने इसी स्थान पर मां कामाक्षा की कठोर तपस्या कर अपने पापों का प्रायश्चित किया। मंदिर के गुफानुमा कक्ष में आज भी भगवान परशुराम की साढ़े तीन से चार फुट ऊंची मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह मंदिर परशुराम द्वारा स्थापित पांच प्रमुख पीठों काओ, ममेल, नगर, निरथ और निरमंड में से एक है।

 

आठी का मेला और मशालों की रात्रिफेर

काओ गांव की सांस्कृतिक पहचान आठी का मेला और रात्रिफेर उत्सव से भी जुड़ी हुई है। यह पर्व हर वर्ष श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मशालों की रोशनी में नगाड़ों की गूंज के बीच भक्त नंगे पांव जोगन पीढ़ा होकर दिग्बंधन रूपी नृत्य करते हैं। यह दृश्य श्रद्धा और भक्ति का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। रात्रिफेर के दौरान गांव का वातावरण रहस्यमयी और आस्था से भरा होता है। मशालों की लपटों के बीच देवी का जयकारा गूंजता है और पूरा काओ गांव दिव्यता में डूब जाता है।

 

सुकेत रियासत की हैं कुलदेवी

मां कामाक्षा को सुकेत रियासत के सेन वंशज शासकों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। राजा-महा राजाओं के समय से लेकर आज तक यह परंपरा जीवित है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मां की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से न केवल सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में शांति और समृद्धि भी प्राप्त होती है। काओ गांव का मां कामाक्षा मंदिर आज भी हिमाचल प्रदेश की प्राचीन शक्ति उपासना परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यहां की मान्यताएं, लोक कथाएं और रहस्यमयी घटनाएं हर श्रद्धालु के हृदय में भक्ति और विस्मय का भाव जगाती हैं। यह स्थान केवल एक धार्मिक धरोहर नहीं, बल्कि हिमाचल की संस्कृति, इतिहास और लोक-आस्था का गूढ़ अध्याय है, जहां देवी की उपस्थिति आज भी महसूस की जा सकती है।

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