Home बड़ी खबरेnews देवलोक में बदला ढालपुर, वाद्ययंत्रों से गूंजी रघुनाथ की नगरी; जयकारों से गूंज उठा क्षेत्र

देवलोक में बदला ढालपुर, वाद्ययंत्रों से गूंजी रघुनाथ की नगरी; जयकारों से गूंज उठा क्षेत्र

Dhalpur transformed into a heaven, the city of Raghunath resounded with musical instruments; the area resounded with cheers.

by punjab himachal darpan

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का शुभारंभ होते ही ढालपुर का नजारा देवलोक में बदल गया है। देवी-देवताओं की उपस्थिति से माहौल देवमय हो गया है। भगवान रघुनाथ की नगरी वीरवार को वाद्ययंत्रों की स्वरलहरियों से गूंज उठी। एक साल बाद फिर कुल्लू घाटी के देवी-देवता एक-दूसरे से मिले। देव और मानस मिलन का अनूठा नजारा यहां देखने को मिलेगा। भगवान रघुनाथ मंदिर पहुंचकर देवी-देवताओं ने देव मिलन किया।

 

वीरवार सुबह करीब 8:00 बजे सुल्तानपुर में भगवान रघुनाथ मंदिर में देवताओं के पहुंचने का सिलसिला आरंभ हुआ। देवता बिजली महादेव एक दिन पूर्व ही मंदिर के समीप डेरा लगाए थे। करीब 9:30 बजे माता रूपासना और जोड़ा नारायण ने भगवान रघुनाथ से देव मिलन किया। ऊझी घाटी, पार्वती घाटी, गड़सा, बंजार, आनी और सैंज घाटी के देवता भी बारी-बारी से पहुंचते रहे। दोपहर बाद करीब 2:00 बजे बंजार के देवता बड़ा छमाहूं यहां पहुंचे। माता भागासिद्ध, माता दशमी वारदा, जुआणी महादेव सहित 300 से अधिक देवताओं ने भगवान रघुनाथ से देव मिलन किया। इससे पहले माता हिडिंबा लाव-लश्कर के साथ राजमहल पहुंचीं। इसके बाद भगवान रघुनाथ के ढालपुर के आने की तैयारियां शुरू हो गईं। 3:00 बजे भगवान रघुनाथ देवता बिजली महादेव सहित अन्य देवताओं के साथ ढालपुर के लिए रवाना हो गए। सुल्तानपुर से लेकर ढालपुर तक माहौल जय श्रीराम और हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठा।

भगवान रघुनाथ की रथयात्रा देखने उमड़े हजारों

शाम 4:12 बजे भगवान रघुनाथ ढालपुर पहुंचे। पूजा-अर्चना और अन्य परंपराओं का निर्वहन राजपरिवार के समक्ष किया गया। 4:37 पर रथ की परिक्रमा शुरू हुई और 4:50 पर भगवान रघुनाथ की रथयात्रा शुरू हुई। इस विहंगम नजारे को देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ी। अस्थायी शिविर तक पहुंचने के बाद भगवान रघुनाथ अपने अस्थायी शिविर में विराजमान हुए। अन्य देवता भी अपने देवलुओं संग अस्थायी शिविरों में गए।

दशहरा उत्सव का आगाज हो गया है। दशहरा में पहले दिन देव परंपरा का निर्वहन करने के देवता अपने अस्थायी शिविरों में विराजमान हो गए हैं। देवलू भी सात दिनों तक अपने देवी-देवताओं संग डेरा डाले रहेंगे।

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