रेबीज एक ऐसा वायरस है जो संक्रमित जानवरों की लार ग्रंथियों में मौजूद रहता है। जब कोई संक्रमित जानवर किसी को काटता है तो यह वायरस घाव के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है। ऐसे में समय पर टिटनेस एवं एआरवी के टीके न लगवाए जाएं तो व्यक्ति की जान भी जा सकती है। यह बात मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर बिपिन ठाकुर ने विश्व रेबीज दिवस पर मैहला में आयोजित कार्यक्रम में कही।
जानवरों के काटने पर पारंपरिक इलाज को छोड़कर शीघ्र डॉक्टर के पास जाना चाहिए। लापरवाही बरतने पर यह वायरस तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है और व्यक्ति में बुखार, सिर दर्द और कमजोरी आने लगती है। बाद में मांसपेशियों में ऐंठन, गुस्सा, पैरालिसिस जैसे लक्षण आने के बाद व्यक्ति की मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि 28 सितंबर को फ्रांसीसी सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक लुई पाश्चर की मृत्यु की सालगिरह भी मनाई जाती है, जिसने रेबीज का पहला टीका विकसित किया था।
पशु चिकित्सक डॉ. विवेक गुप्ता ने बताया कि हर एक पालतू जानवर का पंजीकरण और टीकाकरण समय-समय पर करवाना आवश्यक है। यदि कोई पालतू जानवर काटे तो उसी समय जख्म को अच्छी तरह साबुन व पानी से धोकर डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाना चाहिए। इस अवसर पर डॉ. छांगा राम ठाकुर, दीपक जोशी व उपप्रधान भुवनेश कटोच भी उपस्थित रहे