किसानों के लिए खुशखबरी है। चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने पहली ऐसी देगी मिर्च की किस्म विकसित की है, जो न सिर्फ जीवाणु विल्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी है, बल्कि जल्दी पकने वाली और अधिक पैदावार भी देगी। इस नई किस्म का नाम हिम पालम कैप्सिकम पेपरिका-1 रखा गया है। किसानों को मार्च से इसका बीज मिलना शुरू हो जाएगा।
वैज्ञानिकों के अनुसार 90 से 120 दिन के बजाय नई किस्म मात्र 56 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म हिमाचल की पहाड़ियों के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी किसानों के लिए नई संभावनाएं लेकर आएगी। प्रदेश के हमीरपुर, बिलासपुर, कांगड़ा, शिमला, सोलन, मंडी, लाहौल-स्पीति, किन्नौर और चंबा में इसकी बेहतर पैदावार हो सकती है। मिर्च की फसल में विल्ट की बीमारी सबसे बड़ी समस्या रही है।
अब नई किस्म रोग से तो बचाएगी ही, तैयार भी जल्दी हो जाएगी। इससे किसानों की लागत बचेगी और आमदनी भी बढ़ेगी। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पेपरिका का उपयोग मसालों, अचार, स्नैक्स और सॉस में बढ़ रहा है। इसकी हल्की तीखी और गहरे रंग वाली विशेषता इसे खाद्य उद्योग में भी बड़ा बाजार दिला सकती है। भारत में लाल मिर्च सोलहवीं शताब्दी में आई थी। पेपरिका की उत्पत्ति अमेरिका से हुई, जहां पहली बार मिर्च की खेती की गई।
बढ़ जाता है मदरा, चना दाल और राजमा का रंग और स्वाद
पेपरिका का उपयोग स्थानीय व्यंजनों मदरा, चना दाल, राजमा के रंग और स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल कभी-कभी तंदूरी मैरिनेट, करी और गरम मसाला जैसे मसाला मिश्रणों में किया जाता है। भारतीय खाद्य उद्योग भी पैकेज्ड स्नैक्स, अचार और सॉस में प्राकृतिक रंग के रूप में पेपरिका अर्क का उपयोग करता है। एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन ए, ई और सी से भरपूर होने के कारण पेपरिका बेहतर प्रतिरक्षा और स्वास्थ्य लाभ भी देती है।