हर किसी का सपना होता है अपना घर, जहां चैन की नींद सोया जा सके। मगर नियांगल पंचायत के सतारी गांव की 18 वर्षीय नेहा जरियाल का यह सपना टूटी-फूटी दीवारों और जर्जर छत में कैद है। अपने माता-पिता को खो चुके नेहा और उसके छोटे भाई विशाल (17) बचपन से ही संघर्षों के बीच बड़े हुए। साल 2015 में पिता और चार साल पहले मां का साया उठ गया।
इसके बाद दोनों भाई-बहन अलग-अलग अनाथ आश्रमों में पल-बढ़े। नेहा गरली के बालिका आश्रम और विशाल पालमपुर के तितली होम में। अब जब नेहा बालिग होकर गांव लौटती है तो उसे वही अधबनी और असुरक्षित छत मिली है। कमरा इतना जर्जर है कि दीवारें गिरने को तैयार हैं, और पास की पशुशाला में जानवरों के साथ रहना उसकी मजबूरी बन गई।
नेहा कहती हैं कि सरकार हमें भी इंसान समझे। एक पक्की छत दे दे, ताकि मैं बाकी लोगों की तरह जी सकूं, डर और असुरक्षा के बिना।
मई में कमरा हो गया क्षतिग्रस्त, नहीं मिली मदद
मई 2025 में उसका कमरा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। स्थानीय पटवारी ने रिपोर्ट बनाई और मामला ऑनलाइन दर्ज किया, लेकिन आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली। प्रदेश सरकार की अनाथ बच्चों के लिए पक्के मकान देने वाली योजनाओं का लाभ नेहा जैसे असली हकदारों तक नहीं पहुंचा। सोशल मीडिया पर वीडियो साझा करने के बाद कुछ दानदाताओं की मदद से कमरे की मामूली मरम्मत हुई, जो अस्थायी और असुरक्षित ही साबित हुई।
नेहा को केवल सुख आश्रय योजना के तहत 1,000 रुपये मासिक पेंशन मिल रही है। इतनी राशि में गुजारा मुश्किल है और भविष्य का कोई भरोसा नहीं। उसका भाई विशाल आईटीआई शाहपुर में छात्रावास में पढ़ाई कर रहा है।
पंचायत में दोनों बच्चे अनाथ हैं। मई में इनका एक कच्चा कमरा डैमेज हुआ था जिसकी रिपोर्ट लेकर ऑनलाइन कर दी थी। लेकिन आज तक कोई सहायता नहीं मिली है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि जिनका कोई नहीं उनके वह हैं तो फिर इन अनाथों को पक्के मकान के लिए अनुदान क्यों नहीं मिल पा रहा है। इन अनाथों को पक्के मकान के लिए सहायता राशि मुहैया करवाई जाए।
-संदीप सिंह समकड़िया, उपप्रधान, नियांगल पंचायत
मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली है। जल्द ही मौके पर मुआयना किया जाएगा और प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ व पक्के मकान के लिए कार्रवाई की जाएगी। -नरेंद्र जरियाल, एसडीएम, जवाली