Home बड़ी खबरेnewsHome मां बगलामुखी मंदिर, जहां मत्था टेकने से पूरी होती है हर मुराद, पांडवों को भी मिली थी जीत, जानें इस प्राचीन मंदिर के बारे में

मां बगलामुखी मंदिर, जहां मत्था टेकने से पूरी होती है हर मुराद, पांडवों को भी मिली थी जीत, जानें इस प्राचीन मंदिर के बारे में

Maa Baglamukhi Temple, where every wish is fulfilled by bowing down, even the Pandavas were victorious, learn about this ancient temple.

by punjab himachal darpan

देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से मां भगवती भक्तों की हर मुराद को पूरी करती हैं। नवरात्रि के दौरान देवी मां के हर प्रसिद्ध मंदिरों में भक्तों की खास भीड़ रहती है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां नवरात्रि के अलावा अन्य दिनों में भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। माता रानी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के मालवा जिला में स्थित है। हम बात कर रहे हैं माता बगलामुखी मंदिर के बारे में। कई जाने माने नेता अभिनेता, मंत्रीगण तक इस वर्ष मंदिर में दर्शन कर चुके हैं। हर साल देश-विदेश से यहां करीब लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।

दुनिया में केवल तीन जगहों पर विराजमान हैं मां बगलामुखी

मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है। एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक यहां साक्षात नलखेडा में। कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्या शंकराचार्य जी द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गई, जबकि नलखेडा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीतांबर रूप में शाश्वत काल से विराजित है। प्राचीन काल में यहां बगावत नाम का गांव हुआ करता था। यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है। मां बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और मां हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति हो जाती।

 

मन मोह लेती है मां बगलामुखी की मूर्ति

माता बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा कस्बे में लखुन्दर नदी के किनारे स्थित है। मां बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरुप की है। सिद्धि दात्री मां बगलामुखी के एक ओर धन की देव माता लक्ष्मी और दूसरे तरफ विद्या दायिनी महा सरस्वती विराजमान हैं। मां बगलामुखी की मूर्ति पीताम्बर के होने की वजह से यहां पीले रंग की पूजा सामग्री चढ़ाई जाती है। पीला कपड़ा, पीली चुनरी, पीले रंग की मिठाई और पीले फूल माता रानी को अर्पित किए जाते हैं। मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वस्तिक बनाया जाता है। प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तों का मां के दरबार में हाजिरी लगाना प्रारंभ हो जाता है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाने का सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है। भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तों को मां के आशीर्वाद से बांधे हुए खास दृश्य निर्मित करती है। मूर्ति की स्थापना के साथ जलने वाली अखंड ज्योत आस्था को प्रकाशमान किए हुए हैं।

 

मां बगलामुखी मंदिर से जुड़ी मान्यता

मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। किवंदिती है कि यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित हुई है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था। तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी। पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूप की आराधना कर विपात्तियों से मुक्ति पाई और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया। यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है जहा कोई छोटा बड़ा नहीं सभी के दुखों का निवारण करती हैं। साथ ही मां शत्रु की वाणी और गति का नाश करती है और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देती हैं।

मां बगलामुखी मंदिर में हवन करने का है विशेष महत्व

मंदिर परिसर में एक हवन कुंड मौजूद है, जिसमें सभी भक्तगण अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आहुति देते हैं। नवरात्र के दौरान हवन की क्रियाओं को संपन्न कराने का विशेष महत्त्व है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले इस हवन में तिल, जो, घी, नारियल , आदि का होम करते हैं। कहते हैं कि माता के सामने हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते हैं।

 

मां बगलामुखी मंदिर की खासियत

मां बगलामुखी के इस मंदिर का शिल्प नयनो को सुकून देने वाला है। मंदिर के मौजूदा स्वरुप का निर्माण करीब पंद्रह सौ साल पहले राजा विक्रमादित्य के काल में हुआ। गर्भगृह की दीवारों की मोटाई तिन फीट के आस पास है। दीवारों की बाहर की तरफ की गयी कला कृति आकर्षक है और पुरातात्विक गाथा को प्रतिबिंबित करती नजर आती है। मंदिर के ठीक सामने अस्सी फीट ऊँची दीपमाला दिव्य ज्योत को अलंकृत करती हुई विक्रमादित्य के शासन काल की अनुपम निर्माण की एक और कहानी बयान करती है।मंदिर में सौलह खम्बों का सभा मंडप बना हुआ है जो करीब 250 साल पहले बनाया गया है। शिला लेख पर अंकित वर्णन से मालूम होता है की इस सभा मंडप का निर्माण संवत 1815 में कारीगर तुलाराम ने कराया था।

 

बगलामुखी के इस मंदिर के आस पास की संरचना देवीय शक्ति के साक्षात होने का प्रमाणित करती है। मंदिर के उत्तर दिशा में भैरव महाराज का स्थान। पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा मंदिर के पिछे लखुन्‍दर नदी बहती है। दक्षिण भाग में राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर है। कृष्ण मंदिर के पास ही शंकर, पार्वती और नंदी को स्थापित किया गया है। मंदिर परिसर में संत महात्माओं की सत्रह समाधिया और उनकी चरण पादुकाए हैं। महात्माओं द्वारा यहां ली गई जिंदा समाधिया सत्य का प्रमाण है कि इस स्थान पर देवत्व का वास है। मूल मंदिर के दक्षिण में बाहर की तरफ एक शिव मंदिर बना हुआ है जो पहले मठ के रूप में था।

 

नेता से लेकर अभिनेता तक, मंदिर में टेक चुके हैं माथा

मां के इस मंदिर में पूरे वर्ष भर भक्‍तों का तांता लगा रहता है। मां बगलामुखी के इस मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी के परिवारजन सहित कई केंद्रीय मंत्री और बहुत से दिग्‍गज नेता आ चुके हैं। कई अभिनेता व अभिनेत्रीयां भी मां के दरबार में माथा टेक चुकी हैं। मां के मंदिर में हवन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्‍त होती है, इसलिए चुनाव के समय माता के दरबार में नेतागण अपनी मुराद लेकर आते हैं। साथ ही चुनाव में जीत के लिए कई नेता इस मंदिर में हवन भी करते रहे हैं।

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