केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन बुधवार को हिंसक हो गया। इस हिंसा में चार लोगों की जान चली गई। उपद्रवियों ने लेह स्थित भाजपा कार्यालय को आग लगा दी। हालात पर काबू पाने के लिए अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगाना पड़ा। सरकार ने इस हिंसा के लिए जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया। अगले दिन उनके एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया। लद्दाख के उप-राज्यपाल कविंद्र गुप्ता ने इस सुनियोजित साजिश बताया। इन सबके बीच वांगचुक ने कहा कि इस पूरे मामले में उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
लेह में अचानक ये हिंसा क्यों भड़की?
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन किया गया। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांटा गया। इसमें जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। वहीं, लद्दाख को बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इस बदलाव के तहत जम्मू कश्मीर में पिछले साल नई विधानसभा का भी गठन हो गया। वहीं, दूसरी ओर राज्य पुनर्गठन के साथ ही लद्दाख में इस केंद्र शासित प्रदेश को छठी अनुसूची में शामिल करने और इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठने लगी। इसे लेकर अलग-अलग समय पर प्रदर्शन हुए। इन्हीं मांगो लेकर चल रहा ताजा प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी।
प्रदर्शन लगातार हो रहा था तो अचानक हिंसक कैसे हो गया?
लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर सोनम वांगचुक ने 35 दिनों के धरने का एलान किया था। 10 सितंबर से सोनम वांगचुक और लद्दाख एपेक्स बॉडी के 15 कार्यकर्ता भूख हड़ताल पर थे। मंगलवार को एलएबी के दो कार्यकर्ताओं की हालत बिगड़ी तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। कार्यकर्ताओं की तबीयत बिगड़ने के बाद बुधवार को लेह बंद का एलान किया था। बंद में बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतर आए और मार्च निकाला। युवाओं ने भाजपा व हिल काउंसिल के मुख्यालय में घुसने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस व सुरक्षाबलों ने बल का प्रयोग किया। देखते ही देखते प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच पथराव शुरू हो गया। प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय भाजपा कार्यालय में आग लगा दी।
इस पूरे आंदोलन का केंद्र बिंदु बने सोनम वांगचुक हैं कौन?
सोनम वांगचुक एक इंजीनियर और पर्यावरणविद हैं। 2009 में आई हिंदी फिल्म 3 इडियट्स में आमिर खान द्वारा निभाए गए किरदार की प्रेरणा उन्ही से ली गई थी। वह लद्दाख के छात्रों के लिए स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए भी काम करते रहे हैं। 2018 में, वांगचुक को लद्दाख के लिए शिक्षा में उनके योगदान के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था। वे सतत विकास को भी बढ़ावा देने के लिए जागरुकता फैलाते हैं। 2019 में जब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और वहां विधानसभा का प्रावधान नहीं रखा गया, तब से सोनम लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर उन्होंने अलग-अलग समय पर धऱना प्रदर्शन और मार्च निकाला है।
क्या है संविधान की छठी अनुसूची जिसमें लद्दाख को शामिल करने की मांग की जा रही है?
सोनम वांगचुक का प्रदर्शन मुख्य रूप से चार मांगों को लेकर हो रहा है। इसमें लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, लेह और कारगिल दो अलग लोकसभा सीटें और सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण की मांग शामिल है। इसमें सबसे ज्यादा जिस मांग का बात हो रही है वह संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की है।
दरअसल, पूर्वोत्तर आदिवासियों के अलग जीवन और दृष्टिकोण को बचाने के लिए संविधान सभा ने इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासनिक ढांचा दिया। संविधान के अनुच्छेद 244(2) के तहत, छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष व्यवस्था करती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों के रूप में प्रशासित किया जाना है। छठी अनुसूची के प्रावधान के तहत, राज्य के राज्यपाल को स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों की प्रशासनिक इकाइयों के रूप में क्षेत्रों को निर्धारित करने का अधिकार है।
छठी अनुसूची के पैरा 2(1) में बताया गया है कि हर स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद होगी जिसमें तीस सदस्य होंगे, इसमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाएंगे जबकि बाकि मताधिकार के आधार पर चुने जाएंगे। छठी अनुसूची ने उन्हें कुछ कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियां प्रदान की ताकि उन्हें अपनी भूमि के कानून बनाने, अपने वनों (आरक्षित वनों को छोड़कर) का प्रबंधन करने, पारंपरिक मुखियाओं और प्रधानों की नियुक्ति, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह, सामाजिक रीति-रिवाज का अधिकार प्राप्त हो।
लद्दाख में क्यों हो रही छठी अनुसूची की मांग?
लद्दाख में पूर्ण राज्य की दर्जे की मांग 2019 के पहले से रही है, लेकिन तब ये उतनी तेज नहीं थी क्योंकि लद्दाख जम्मू कश्मीर का हिस्सा था और धारा 370 वाले प्रावधान यहां भी लागू होते थे। जिसमें न तो कोई बाहरी यहां जमीन खरीद सकता था और न ही उसे सरकारी नौकरी मिलती थी। लेकिन फिर 2019 में धारा 370 को हटाया गया। पहले लद्दाख इस फैसले से खुश था क्योंकि अब श्रीनगर का राज उस पर हट रहा था, लेकिन फिर लद्दाख में बाहर से आकर लोगों ने निर्माण करना शुरू किया, स्थानीय लोगों को डर था कि इससे वहां के ग्लेशियर पर प्रभाव पड़ेगा। इसे संरक्षित और सुरक्षित करने के लिए छठी अनुसूची की मांग की गई। ताकि वहां की जलवायु को बचाया जा सके।
2024 में अपनी पहली 21 दिनों की भूख हड़ताल के दौरान रॉयटर्स को दिए बयान में सोनम वांगचुक ने कहा था कि, “लद्दाख में कोई लोकतंत्र नहीं है।” उन्होंने कहा कि यदि क्षेत्र में निर्वाचित प्रतिनिधि होते, तो भूमि और जंगलों को औद्योगिक और खनन हितों से बचाने के लिए कानून बनाए जा सकते थे। सरकार ने बिना स्थानीय परामर्श के लद्दाख के खानाबदोश चरागाहों पर 13 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना “थोप” दी। उन्होंने इस समय कहा था कि “लद्दाख धरती के थर्मामीटर की तरह है। इसलिए अगर यह नष्ट हो गया… तो यह एक वैश्विक तबाही होगी”
इससे पहले सोनम वांगचुक ने कब-कब आंदोलन किया?
2023 फरवरी की शुरुआत में सोनम वांगचुक ने केंद्र शासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर पांच दिन की भूख हड़ताल की थी। शून्य से नीचे के तापमान में, लद्दाख से हज़ारों लोग उनके साथ इस भूख हड़ताल में शामिल हुए।
18 जून 2023 को शुरू हुए सोनम वांगचुक ने अनशन ने लेह के एनडीएस स्टेडियम में सैकड़ों की भीड़ को आकर्षित किया। शुरुआत में यह अनशन सात दिनों का था, लेकिन उन्होंने इसे दो दिन और बढ़ा दिया।
वांगचुक का सरकार के खिलाफ पहला लंबा अनशन 6 मार्च 2024 से शुरू हुआ था। जलवायु से जुड़ी चुनौतियों के मुद्दे के साथ वे 21 दिनों की भूख हड़ताल पर थे। सोनम ने कहा, “21 दिनों के जलवायु उपवास के दौरान, 350 लोग -10 डिग्री सेल्सियस तापमान में सोए।”
सोनम की ओर से लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर अलग आंदोलन 1 सितंबर 2024 से शुरू हुआ। सोनम वांगचुक ने 1 सितंबर को लेह से दिल्ली तक पैदल मार्च शुरू किया, जिसका उद्देश्य केंद्र सरकार पर लद्दाख के लिए किए गए वादों को याद दिलाना और दबाव बनाना था। इसे “दिल्ली चलो” नाम दिया गया, जिसमें लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) भी शामिल हुए।
इसके बाद 10 सितंबर 2025 से 35 दिनों के अनशन की शुरुआत हुई, जो हिंसक प्रदर्शन के कारण केवल 15 दिन में ही खत्म करना पड़ा।
हिंसा को लेकर सरकार का क्या रुख है?
सोनम वांगचुक के ताजा अनशन को देखते हुए केंद्र और लेह प्रतिनिधित्व के बीच 6 अक्टूबर को बात होने वाली थी। इससे कुछ दिन पहले यह हिंसा हो गई। गृह मंत्रालय की तरफ से एक बयान जारी कर बताया गया कि जब सोनम ने अनशन शुरू किया उसी समय, भारत सरकार उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी), उसकी उप-समिति और स्थानीय नेताओं के साथ कई अनौपचारिक बैठकों के माध्यम से शीर्ष निकाय लेह और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के साथ पहले से ही बातचीत कर रही थी।
बातचीत की प्रक्रिया ने लद्दाख की अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 45% से बढ़ाकर 84% करने, परिषदों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण प्रदान करने और भोटी व पुर्गी को आधिकारिक भाषा घोषित करने जैसे अभूतपूर्व परिणाम दिए हैं। इसके साथ ही, 1800 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया भी शुरू की गई। हालांकि, कुछ राजनीतिक रूप से प्रेरित लोग उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के तहत हुई प्रगति से खुश नहीं थे और संवाद प्रक्रिया को विफल करने की कोशिश कर रहे थे। उच्चाधिकार प्राप्त समिति की अगली बैठक 6 अक्तूबर को निर्धारित की गई है, जबकि लद्दाख के नेताओं के साथ 25 और 26 सितंबर को भी बैठकें आयोजित करने की योजना थी।
गृह मंत्रालय ने आगे कहा कि जिन मांगों को लेकर वांगचुक भूख हड़ताल पर थे, वह एचपीसी में चर्चा का अभिन्न अंग हैं। कई नेताओं द्वारा भूख हड़ताल समाप्त करने का आग्रह करने के बावजूद, उन्होंने भूख हड़ताल जारी रखी और अरब स्प्रिंग शैली के विरोध प्रदर्शनों और नेपाल में जेन-जी के विरोध प्रदर्शनों का भड़काऊ उल्लेख करके लोगों को गुमराह किया। इसी के चलते हिंसा भड़की।
हिंसा के बाद सरकार की ओर से क्या कार्रवाई की गई है?
हिंसा के बाद लेह में हालात तनावपूर्ण हैं। गुरुवार को सभी स्कूल-कॉलेज बंद रहे। 26 सितंबर को भी स्कूल-कॉलेज सब बंद रहेंगे। कारगिल भी बंद रहा। इस बीच गृह मंत्रालय की एक टीम ने लेह पहुंचकर स्थिति की समीक्षा की। टीम ने लेह एपेक्स बॉडी, कारगिल डेमोक्रेटिक 87 घायलों अलायंस के प्रतिनिधियों में से 15 की के साथ ही स्थानीय हालत गंभीर सांसद को दिल्ली बुलाया है, जहां 27-28 सितंबर को उनकी बैठक होगी और स्थानीय हित्तों से जुड़ी मांगों पर चर्चा की जाएगी। इस बीच लेह में किसी अप्रिय स्थिति की आशंका के मद्देनजर 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है। वहीं, एलजी कविंद्र गुप्ता ने उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक कर लेह में हालात की समीक्षा की। उन्होंने विरोध-प्रदर्शन के बाद लद्दाख में पैदा हुई स्थिति का आकलन किया। एलजी ने अधिकारियों को लद्दाख में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए। यह भी कहा कि हालात को देखते हुए सतर्कता बरतते हुए एजेंसियों के साथ समन्वय बनाकर काम किया जाए। एलजी ने इससे पहले कहा कि मौतों के लिए प्रदर्शनकारी खुद जिम्मेदार हैं।
क्या सोनम वांगचुक पर भी कोई कार्रवाई हुई है?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लद्दाख के जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के दो गैर सरकारी संगठनों स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) और हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (एचआईएएल) के एफसीआरए लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिए हैं। मंत्रालय ने इन संगठनों के खातों में वित्तीय विसंगतियों के आरोप पर यह कार्रवाई की है। इसमें स्वीडन से धन का हस्तांतरण भी शामिल था, जिसे मंत्रालय ने राष्ट्रीय हित के विरुद्ध पाया। हालांकि, एचआईएएल का लाइसेंस रद होने की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। मंत्रालय ने एसईसीएणओएल के इस तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें कहा था बैंक निधियों का उपयोग केवल शैक्षिक मंत्रालय ने एसईसीएमओएल के इस उद्देश्यों के लिए किया गया। मंत्रालय ने कहा, राष्ट्र की संप्रभुता पर अध्ययन के लिए विदेशी योगदान स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध है।
सोनम बागचुक के संगठन हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लर्निंग पर सीबीआई का शिकंजा भी कस सकता है। सीबीआई पिछले दो महीनों से एचआईएएल की जांच कर रही है। सीबीआई की टीमें लद्दाख में डेरा डाले हुए हैं। हालांकि, अभी तक कोई प्रारंभिक जांच पा नियमित मामला दर्ज नहीं किया गया है। सीबीआई सूत्रों के अनुसार यह जांच विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के उल्लंघनों के खिलाफ की जा रही है। इससे पहले अगस्त में लद्दाख प्रशासन ने हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लर्निंग को दी गई भूमि के आवंटन को रद्द कर दिया था।
सोनम वांगचुक का इस पूरे घटनाक्रम पर क्या कहना है?
सोनम वांगचुक ने हिंसा के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराए जाने को बलि का बकरा बनाने की रणनीति बताया। उन्होंने कहा, ऐसे आरोप कि हिंसा मेरी ओर से या कांग्रेस की ओर से भड़काई गई, समस्या के मूल को संबोधित करने के बजाय बलि का बकरा ढूंढने जैसा है। इसका मकसद हिमालयी क्षेत्र की मूल समस्याओं से बचना है। इससे किसी को लाभ नहीं होगा। माना कि वे (गृह मंत्रालय) बलि का बकरा बनाने में चतुर हो सकते हैं, लेकिन वे बुद्धिमान नहीं हैं। युवा पहले से ही निराश हैं। मैं गिरफ्तारी के लिए तैयार हूं, लेकिन इससे उन्हें अधिक समस्याएं हो सकती हैं। उनकी मुश्किलें कम नहीं होगी, बल्कि और बढ़ेगी।