Home बड़ी खबरेnews अलविदा मिग-21: कभी बना गेमचेंजर तो कभी उड़ता ताबूत के नाम से हुआ बदनाम… लड़ाकू विमान के सफर की पूरी कहानी

अलविदा मिग-21: कभी बना गेमचेंजर तो कभी उड़ता ताबूत के नाम से हुआ बदनाम… लड़ाकू विमान के सफर की पूरी कहानी

Goodbye MiG-21: Sometimes a game changer, sometimes infamous as a flying coffin... the full story of the fighter plane's journey

by punjab himachal darpan

इंडियन एयरफोर्स के लड़ाकू विमान मिग-21 ने विभिन्न युद्धों में अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है। यह विमान जहां एक ओर युद्धों में गेमचेंजर रहा वहीं उड़ता ताबूत और विडो मेकर कहकर इसे बदनाम भी किया गया।

ऑपरेशन सिंदूर में भी था अलर्ट मोड पर

साल 1965 से लेकर बालाकोट एयर स्ट्राइक तक विभिन्न अभियानों के तहत इस लड़ाकू विमान ने अहम भूमिका निभाई। ऑपरेशन सिंदूर में भी यह विमान पूरी तरह अलर्ट मोड में था और इसकी लड़ाकू रैकी जारी थी। 26 सितंबर को यह विमान 62 साल के सफर के बाद इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा। इसकी विदाई इसके सबसे पहले घर चंडीगढ़ एयरफोर्स स्टेशन से ही होगी। यह विमान एयरफोर्स के सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमानों में से एक रहा है।

65 के भारत-पाक युद्ध से हुई थी शुरुआत

विभिन्न युद्धों में मिग-21 के ऐतिहासिक योगदान की बात करें तो सबसे पहले इस विमान ने साल 1965 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया था। उसके बाद साल 1971 के युद्ध में भी यह विमान गेमचेंजर बना। वर्ष 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर के दाैरान कारगिल में भी इस विमान ने कौशल दिखाया। इस दौरान मिग-21 ने भारतीय इलाके में घुसपैठ कर रहे पाकिस्तान नेवल एयर आर्म के अटलांटिक विमान को मार गिराया था।

पायलट अभिनंदन ने भी भरी थी उड़ान

वर्ष 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की थी। उस दौरान भी इस लड़ाकू विमान की भूमिका अहम रही। जांबाज पायलट अभिनंदन वर्धमान ने मिग-21 बाइसन में ही उड़ान भरकर दुश्मन से लोहा लिया था। एयरफोर्स के एक आला अधिकारी बताते हैं कि मई 2025 ऑपरेशन सिंदूर में भी मिग-21 को पूरी तरह अलर्ट मोड पर रखा हुआ था।

तेज रफ्तार में थी कम विजिबिलिटी की दिक्कत

आसमान में जिस जांबाजी के साथ यह विमान अपने टारगेट को अंजाम देता था उसका कोई जवाब नहीं था। रूस ने इन जहाजों को लगभग 40 साल की उम्र बताकर भारत को बेचा था मगर समय-समय पर भारतीय इंजीनियरों ने इसे अपग्रेड किया। नतीजतन आज ये विमान 62 साल की उम्र के बाद रिटायर हो रहे हैं।

 

इसके साथ विडंबना यह रही कि लंबा समय और कुछ तकनीकी, मेंटेनेंस व कुछ मानवीय कमियों के कारण यह दुर्घटनाग्रस्त भी होते रहे। इसी वजह से इन्हें उड़ता ताबूत और विडो मेकर कहा जाने लगा।

 

वर्ष 1963 में एयरफोर्स के जंगी बेड़े में शामिल यह विमान समय के साथ यह तकनीकी रूप से बूढ़ा होता गया। अभी तक देश में मिग-21 की करीब 490 से अधिक दुर्घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें 200 से ज्यादा पायलटों की जान जा चुकी है। इनमें से कई घटनाएं तकनीकी खराबी, बर्ड हिट या रनवे पर विफलता के कारण हुईं। तेज रफ्तार के दौरान पायलट के लिए कम विजिबिलिटी भी एक बड़ी कमी थी।

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