शक्ति की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्रि इस वर्ष 22 सितंबर 2025 से प्रारंभ हो रहा है। नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। लाखों भक्त इन नौ दिनों में व्रत रखकर देवी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने का प्रयास करते हैं।
हालांकि नवरात्रि का व्रत केवल भूखे रहने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक कठोर आध्यात्मिक साधना है जिसमें तन, मन और आत्मा की शुद्धि पर जोर दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, व्रत का पूर्ण और मनोवांछित फल तभी प्राप्त होता है जब इसका पालन पूरे विधि-विधान और कड़े नियमों के साथ किया जाए। यदि आप भी इस नवरात्रि व्रत रख रहे हैं, तो इन पांच महत्वपूर्ण नियमों का पालन जरूर करें।
सात्विक आहार का पालन
नवरात्रि व्रत का सबसे पहला और महत्वपूर्ण नियम है सात्विक भोजन। इन नौ दिनों में मांस, मदिरा, अंडा, लहसुन, प्याज जैसे तामसिक और राजसिक खाद्य पदार्थों का सेवन पूरी तरह से वर्जित है। व्रत के दौरान केवल फलाहार, दूध, दही, और कुट्टू, सिंघाड़ा जैसे व्रत के अनाजों का ही सेवन करें। भोजन में साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें। सात्विक भोजन मन को शांत और शुद्ध रखता है, जो साधना के लिए अत्यंत आवश्यक है।
ब्रह्मचर्य का पालन करें
व्रत की अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य माना गया है। इस नियम का उद्देश्य अपनी ऊर्जा को संरक्षित कर उसे आध्यात्मिक दिशा में लगाना है, जिससे भक्ति और गहरी हो सके।
आचरण की शुद्धता
नवरात्रि के नौ दिन आत्म-नियंत्रण और आत्म-चिंतन के हैं। इस दौरान अपने आचरण को पूरी तरह से शुद्ध रखें। झूठ बोलना, किसी पर क्रोध करना, चुगली करना या किसी के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने से बचें। वाणी और व्यवहार में सौम्यता बनाए रखें। किसी का दिल दुखाने से व्रत का पुण्य क्षीण होता है, इसलिए सभी के प्रति प्रेम और सद्भाव का भाव रखें।
स्वच्छता और भूमि शयन
इन नौ दिनों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। प्रतिदिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को भी साफ-सुथरा रखें। मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों में बाल या नाखून काटना भी वर्जित है। इसके साथ ही, कई भक्त अहंकार के त्याग और सादगी के प्रतीक के रूप में पलंग पर न सोकर जमीन पर स्वच्छ चादर बिछाकर सोते हैं। यह देवी के प्रति समर्पण और त्याग को दर्शाता है।
नित्य पूजा और क्षमा-प्रार्थना
व्रत रखने वाले साधक को दोनों समय (सुबह-शाम) देवी की पूजा, मंत्र जाप और आरती करनी चाहिए। यदि संभव हो तो दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें। पूजा के अंत में देवी से अपनी जाने-अनजाने में हुई भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। इन नियमों का पूरी श्रद्धा से पालन करने पर ही व्रत सफल होता है और मां दुर्गा की असीम कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।