टूटी-फूटी कारें अब भी मलबे में आधी दबी खड़ी हैं। हड़सर से डल झील तक का रास्ता ऐसा लगता है मानो कभी यहां से आस्था के लाखों कदमों वाली पदयात्रा गुजरी ही न हो। चारों तरफ बिखरे पत्थर, गिरा मलबा और सूना पड़ा रास्ता बता रहा है कि प्राकृतिक आपदा ने इस बार मणिमहेश यात्रा में किस तरह कहर बरपाया। नाले इतने उफान पर आए कि रास्तों को बहा ले गए। अब पानी भले ही कम हो गया हो, लेकिन नालों का दायरा नदी के बराबर दिखता है। जहां अस्थायी दुकानें और लंगर स्टॉल लगते थे, वहां अब सिर्फ चट्टानें और ढही हुई मिट्टी है।
भरमौर कस्बे तक वाहन किसी तरह पहुंच रहे हैं, लेकिन उसके आगे का रास्ता मौत से खेल जैसा है। जगह-जगह सड़क गायब हो चुकी है और उसकी जगह पहाड़ से गिरे पत्थरों का ढेर है। चंबा-भरमौर नेशनल हाईवे पर भी राह आसान नहीं है। कई जगह भूस्खलन से सड़कें संकरी हो चुकी हैं। भरमौर-होली उपमंडल की 31 पंचायतों की 70 हजार आबादी और यहां फंसे सेब को मंडियों तक पहुंचाने के लिए जद्दोजहद हो ही है। प्रबंधन ने भले ही मलबा हटाकर अस्थायी तौर पर मार्ग खोल दिया गया है, मगर गिरते पत्थर और फिसलन अब भी सफर को खतरनाक बनाए हुए हैं। मलबे, टूटी सड़कों और वीरान पड़े मार्ग को देखकर लगता है कि मणिमहेश यात्रा के लिए इस राह को दोबारा तैयार करना आसान नहीं होगा।
लाखों का सामान फंसा
भरमौर के होम स्टे संचालक पंडित हरिशरण शर्मा, बागवान नारायण दास और जोगेंद्र ठाकुर कहते हैं कि हर साल यहीं से हमारी रोज़ी-रोटी चलती थी, लेकिन इस बार न यात्रा हुई, न कारोबार। लाखों का सामान फंसा पड़ा है। श्रद्धालुओं और लंगर समितियों का सामान भी डल झील मार्ग में बिखरा पड़ा है। गौरीकुंड और सुंदरासी में टेंट और ढांचे ढहकर मलबे में बदल चुके हैं।
13 किलोमीटर हाईवे पूरी तरह क्षतिग्रस्त
कटोरी बंगला से भरमौर तक करीब 13 किलोमीटर हाईवे पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है। कटोरी बंगला, ढुंढियारा बंगला, पंचपूला, बैली और कांदू के समीप पहाड़ काट पठानकोट- भरमौर हाईवे सुचारु करवाया गया। परेल में छह किलोमीटर, जांघी और कलसूई में 50-50 मीटर, लोथल में 700 मीटर दुर्गेठी घार में दो जगह 250-250 मीटर हाईवे धंस गया है। इसके अलावा बकाणी, बग्गा, रूंगडी नाला, चूड़ी, धरवाला में भी हाईवे नए सिरे से पहाड़ काट, पत्थर भर, अस्थायी डंगे लगाकर सुचारु किया है।
ग्लोबल वार्मिंग का असर : कुलभूषण उपमन्यु
पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर बताते हैं। शोध में पता चला है कि हिमालय में तापमान सामान्य से एक प्रतिशत ज्यादा बढ़ चुका है। यही कारण है कि बादल फटने और भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। उनके मुताबिक धार्मिक यात्रा को टूरिज्म प्वाइंट नहीं बनाना चाहिए। हर पहाड़ और क्षेत्र की सहन क्षमता होती है। प्रकृति से खिलवाड़ करेंगे तो उनके नतीजे तो भुगतने पड़ेंगे।
हाईवे खोलने के लिए विभाग की ओर से चंबा भेजे गए लोक निर्माण विभाग बिलासपुर के अधीक्षण अभियंता जीत सिंह ठाकुर ने कहा कि कई जगह पहाड़ काटकर सड़क बनाई जा रही है। अभी अस्थायी रूप से रास्ता खोला गया है, लेकिन इसे पूरी तरह सुचारु करने के लिए करोड़ों का बजट चाहिए। 245 करोड़ रुपये का नुकसान सामने आया है। हाईवे के रख-रखाव के लिए अभी भी 35 करोड़ रुपये की जरूरत है