Home बड़ी खबरेnews आपदा ने छीना आशियाना, शिविर बना ठिकाना, जंगल में छोड़े पशु

आपदा ने छीना आशियाना, शिविर बना ठिकाना, जंगल में छोड़े पशु

Disaster snatched away homes, camps became shelters, animals left in the forest

by punjab himachal darpan

ग्राम पंचायत बछवाई के गांव गरडेड़ में मंगलवार को हुए भूस्खलन ने 14 परिवारों के सिर से छत छीन ली। सभी परिवार बेघर हो गए। आपदा ने ऐसा कहर बरपाया कि उन्हें संभलने तक का मौका नहीं मिला। सड़कों से लेकर बिजली-पानी की व्यवस्था भी ठप पड़ गई है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि इस क्षेत्र में सेना को मोर्चा संभालना पड़ा।

 

प्रभावित परिवारों की मदद के लिए तीसरे दिन वीरवार को सुबह नौ बजे कर्नल अर्पित पारिक के नेतृत्व में 60 सेना के जवान राहत कार्यों में जुट गए। उनके साथ पूर्व सैनिक कल्याण समिति थुरल के सदस्य समाज जागरण मंच के सदस्य और गांव के लोग भी क्षतिग्रस्त मकानों से सामान बाहर निकालने में हाथ बंटाते रहे।

कर्नल अर्पित पारिक ने बताया कि दो बजे तक दो परिवारों के घरों का सामान बाहर निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया था। सभी प्रभावित परिवारों के सदस्यों और सेना के जवानों को भोजन करवाया गया। दोपहर बाद तीन बजे राहत कार्य फिर शुरू किया गया। शाम छह बजे तक एक और प्रभावित परिवार के मकान से भी सामान निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया। सेना की ओर से प्रभावित परिवारों के लिए तीन दिन का खाने-पीने का सामान राहत शिविर में पहुंचा दिया गया है। उन्होंने कहा कि शुक्रवार सुबह नौ बजे सेना के जवान फिर से राहत कार्यों में जुट जाएंगे। राहत शिविर के मुख्य कार्यकर्ता विजय कुमार शर्मा ने बताया कि बुधवार को जिलाधीश कांगड़ा हेमराज बैरवा के आदेश पर वीरवार दोपहर तीन बजे विभाग के कर्मचारियों ने सोलर लाइट लगाने का कार्य शुरू किया और पांच बजे तक राहत शिविर में तीन सोलर लाइटें लगा दीं।

उन्होंने बताया कि इलाके में बिजली आपूर्ति को बहाल करने के लिए सुबह नौ बजे बोर्ड के कर्मचारी जुट गए थे। भूस्खलन के कारण बिजली के खंभे गिर गए हैं। छह नए खंभे लगा दिए गए हैं। बिजली बोर्ड के अतिरिक्त सहायक अभियंता अमित सियाल ने दावा किया वीरवार रात आठ बजे तक बिजली आपूर्ति बहाल कर दी जाएगी।

थुरल के तहसीलदार राजेश जरियाल और नायब तहसीलदार विजय सिंह गरडेड़ गांव में लगातार भूस्खलन की स्थिति का जायजा ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रभावित परिवारों को हरसंभव सहायता प्रदान की जा रही है। प्रभावित परिवारों के खाने-पीने और रहने के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। जो परिवार कहीं किसी और जगह जाना चाह रहे हैं, उन्हें वहां तक सुरक्षित भेजा जा रहा है। प्रभावित परिवारों के लिए बिजली का प्रबंध किया जा रहा है। फिलहाल राहत शिविर में एक जनरेटर की सुविधा उपलब्ध करवा दी गई है। पीने के पानी की व्यवस्था की गई है।

पीड़ितों ने यूं बयां किया अपना दर्द

 

– इस त्रासदी में सारी जमा पूंजी खत्म हो चुकी है। मेरे पास एक दूध देने वाली गाये है। इसे मैंने रिश्तेदार को दे दिया है। -कमलेश कुमार

– कुछ दिन पहले दो कमरों का मकान बनाया। इसका एक सप्ताह पहले स्लैब डाला था। हमारे पास जो कुछ भी था, सब कुछ तबाह हो गया। -इंदु देवी

 

– कुछ वर्ष पहले ही मकान बनाया है। इसकी लागत लगभग 70 लाख रुपये आई है। भूस्खलन से उनका सबकुछ तबाह हो गया। एक दूध देने वाली गाये है, जिसे पिछले कल बेच दिया है। एक गाड़ी भी है, जो भूस्खलन के कारण फंसी हुई है। -ओमप्रकाश

 

– भूस्खलन से काफी नुकसान हुआ है। तीन भैंसें हैं, जिन्हें बाहर जंगल में छोड़ दिया है। उनको खिलाने और बांधने के लिए कुछ नहीं है, जिससे काफी आहत हूं। -हरनाम सिंह

 

– हमारा सब कुछ बर्बाद हो गया है। मेरे पास जो भी जमा पूंजी थी, वह मकान बनाने में लग गई और आज भूस्खलन के कारण सब तबाह हो गया। मेरे पास दो गायें दूध देने वाली हैं, जिन्हें वीरवार को अपने रिश्तेदार को दे दिया है। हमारा परिवार रिश्तेदार के घर में शरण लिए हुए है। -नारायण दास

– त्रासदी में सारी पूंजी खत्म हो गई। जो कुछ सामान घर के अंदर बचा हुआ है, उसे निकालकर राहत शिविर के एक कमरे में रखा है। हमारी एक बेटी और एक बेटा है। वे स्कूल जाते हैं, लेकिन स्कूल आने-जाने में हो रही समस्या से अभी तक नहीं जा रहे हैं। -उषा देवी

 

– हमने 60-70 लाख रुपये अपने मकान में खर्च कर दिए। मंगलवार की सुबह भूस्खलन से सारा मकान क्षतिग्रस्त हो गया। हमारे पास एक दूध देने वाली गाये थी, जिसे बेच दिया है। हम सभी गांववासी राहत शिविर में रहने के लिए मजबूर हो गए हैं। -तृप्ता देवी

 

– दिहाड़ी-मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का गुजारा करते हैं। अभी हाल ही में मकान बनाया, जो भूस्खलन की चपेट में आ गया। मेरे पास दो बैल, एक दूध देने वाली गाये, एक बछड़ा और 15 बकरियां हैं। इनको बाहर जंगल में छोड़ रखा है। उनको खिलाने और बांधने के लिए मेरे पास जगह नहीं है। मेरे दो बच्चे हैं, जिन्हें स्कूल में आने-जाने में मुश्किल हो रही है। -नरेंद्र कुमार

– मेका मकान भी भूस्खलन की चपेट में आ गया है और काफी नुकसान हुआ है। मेरे पास दो भैंसे हैं, उनको खिलाने और बांधने के कुछ नहीं है। इसलिए उन्हें बाहर खुले जंगल में छोड़ दिया है। -राकेश कुमार – प्रशासन ने हमें राहत शिविर में ठहराया है और खाने-पीने की चीजें दी जा रही हैं, लेकिन पशुओं के लिए कोई राहत सामग्री नहीं है। हमारे यहां मंगलवार से बिजली आपूर्ति बंद पड़ी हुई है। -गीता देवी

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