Home धर्म करवा चौथ कब है और क्या है इसकी पूजा विधि और कथा

करवा चौथ कब है और क्या है इसकी पूजा विधि और कथा

When is Karva Chauth and what is its worship method and story

by punjab himachal darpan

पूजा विधि (Karwa Chauth 2025 Puja Vidhi)

सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और ‘सरगी’ का सेवन करें।

इसके बाद मन में व्रत का संकल्प लें।

शाम के समय पूजा के लिए तैयार हों।

सोलह शृंगार जरूर करें।

एक वेदी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर करवा माता की तस्वीर स्थापित करें।

पूजा की थाली में करवा, दीपक, धूप, रोली, चंदन, अक्षत, फूल, मिठाई और फल रखें।

इसके अलावा पूजा में करवा चौथ की कथा की पुस्तक और पानी से भरा एक लोटा भी रखें।

सबसे पहले, गणेश जी की पूजा करें।

इसके बाद, सभी महिलाएं एक साथ बैठकर करवा चौथ की कथा सुनें या पढ़ें।

करवा चौथ व्रत शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय समय (Karwa Chauth 2025 Shubh Muhurat And Moon Time)

हिंदू पंचांग के अनुसार, 09 अक्टूबर को देर रात 10 बजकर 54 मिनट पर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि शुरू होगी। साथ ही इसकी समाप्ति 10 अक्टूबर को शाम 07 बजकर 38 मिनट पर होगी। ऐसे में 10 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा।

पूजा सामग्री (Karwa Chauth 2025 Puja Samagri)
करवा (मिट्टी का कलश)
दीपक और धूप
रोली, चंदन और (अक्षत)
तांबे या पीतल का लोटा
फूल और माला
मिठाई, फल और मेवे
करवा चौथ की कथा की पुस्तक
छलनी/(चलनी)
शुद्ध जल
दूध आदि।

रात में चांद निकलने पर, छलनी/(चलनी) से चांद को देखें और उसके बाद उसी से पति का चेहरा देखें।
इसके बाद, चांद को जल का अर्घ्य दें।
चांद को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथों से पानी पीकर और मिठाई खाकर व्रत तोड़ें।
इस दिन तामसिक चीजों से दूर रहें।

कथा

एक सर्वगुण और धर्म के कर्मो में निमित रहने वाला ब्राह्मण था। उस ब्राह्मण की एक पुत्री और सात पुत्र थे। पुत्री का नाम वीरावती था और इकलौती बेहेन होने के कारन उसके सातों भाई उससे बोहोत प्रेम करते थे। कुछ समय में वीरावती का विवाह एक ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के कुछ समंय बाद वीरावती अपने मायके आई। उस दिन उसने करवा चौथ का व्रत रखा था और भूक के कारण वो बोहोत व्याकुल हो रही थी। शाम को सरे भाई अपने अपने काम से घर आये तो उन्होंने अपने बेहेन से उसकी व्याकुलता का कारण पूछा। वीरावती ने बताया की उसका व्रत है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात ही भोजन ग्रहण कर सकती है।

परन्तु भइओ से अपनी लाड़ली बेहेन की व्याकुलता देखि नहीं जा रही थी। तब सबसे छोटे भाई ने एक तरकीब लगाई और एक दीपक प्रज्वयालीत करके चलनी की ओट में पास के पीपल के वृक्ष पर रख दिया। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था मनो चाँद निकल आया हो। इसके पश्चात सभी भइओ ने जाके वीरावती को कहा की चाँद निकल आया है और अब तुम अपना करवा चौथ का व्रत खोल सकती हो। वीरावती ने भइओ की बात मनके विधिपूर्वक चन्द्रमा की अर्घ्य दिआ।

घर एके उसने जैसे ही भोजन का पहला निवाला अपने मुख में डाला तो उसे चींख आ गई। परन्तु वीरावती इस चेतावनी का समझ न पाई। जब दूसरा निवाला मुख में रखा तो उसमे बाल निकल आया परन्तु वीरावती भूख से इतनी व्याकुल थी की उसने इसे भी अनदेखा करदिआ। जैसे ही तीसरा निवाला उसने ग्रहण किआ उसे उसके पति की मृत्यु का सामंचार प्राप्त हुआ। यह दुखद समाचार सुनके वीरावती रोने बिलखने लगी तब उसकी भाभी ने उसे सच्चाई से अवगत कराया और बताया की ये सब व्रत टूटने के कारन हुआ है।
सच्चाई जानने के उपरांत वीरावती ने निश्चय किआ की वो अपने पति को अपने सतीत्व से दुबारा जीवित करेगी और इसीलिए उसने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिआ। वो पूरे एक साल तक अपनी पति के शरीर की देखभाल करती रही और उसपर उगने वाली सुईनुमा घास को इक्कठा करती रही। उसके मन में दृढ़ निश्चय था की उसका पति वापस से जीवित होगा। एक साल बाद फर से करवा चौथ का त्यौहार आया और वीरावती की भाभीआं उससे आषीर्वाद लेने आई। उसने अपनी भाभिओं से आग्रह की ये ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो। तब उसकी एक भाभी ने कहा की सबसे छोटे भाई के कारण तेरे पति की मृत्यु हुई है इसीलिए उसकी पत्नी ही इसे जीवित कर सकती है।

अंत में सबसे छोटी भाभी आती ह और वीरावती उससे घास लेके उसके पति को जीवित करने का आग्रह करती है। कुछ देर तक भाभी हठ करती है परन्तु वीरावती का पतिव्रता रूप और सतीत्व देख कर उसकी बात मान लेती है। इसके पश्चात भाभी अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। वीरावती का पति जीवित हो जाता है।

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